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User talk:Vachaspati giri

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श्री मार्कण्डेय महादेव मंदिर कैथी वाराणसी श्री मारकंडेश्वर महादेव धाम यह पूर्वांचल के प्रमुख देवालयों में से एक है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों के समकक्ष वाले इस धाम कि चर्चा श्री मार्कंडेय पुराण में भी की गयी है। आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, भौगोलिक, शैक्षिक ऐतिहासिक और पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण लगभग 15000 की आबादी वाला कैथी गांव, वाराणसी-गाजीपुर राष्टकृीय राजमार्ग के 28वें किलोमीटर पर स्थित है। राजवारी रेलवे स्टेशन से इस गांव की दूरी दो किलोमीटर है। यहां के लोग विभिन्न क्षेत्रों में देश और विदेश में अपनी उत्कृष्ट योगदान दे रहे हैं। इसे स्थानीय लोग बाबा मारकंडेश्वर महादेव की अनुकम्पा मानते हैं। शिव और ब्रह्मा को अपने अराध्य देव मानने वाले मार्कण्डेय ऋषि का जिक्र विभिन्न पुराणों में कई बार किया गया है। मार्कण्डेय ऋषि और संत जैमिनी के बीच हुए संवाद के आधार पर मार्कण्डेय पुराण तक की रचना की गई है। इसके अलावा भागवत पुराण के बहुत से अध्याय मार्कण्डेय ऋषि की प्रार्थनाओं और संवादों पर ही आधारित हैं।

  • मार्कण्डेय महादेव मंदिर कथा*

मृकण्ड ऋषि तथा उनकी पत्नि मरन्धती दोनों पुत्रहीन थे। वे नैमिषारण्य, सीतापुर में तपस्यारत थे। वहाँ बहुत-से ऋषि भी तपस्यारत थे। वे लोग मृकण्ड ऋषि को देख कर अक्सर ताना स्वरूप कहते थे कि- “अपुत्रो गति नाश्ति” अर्थात “बिना पुत्र के गति नहीं होती।” मृकण्ड ऋषि को बहुत ग्लानी होती थी। वे पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ सीतापुर छोड़कर विंध्याचल चले आये। वहाँ इन्होंने घोर तपस्या प्रारम्भ की। इनकी साधना से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का रास्ता बताया कि हमारी लेखनी को मिटाने वाले सिर्फ एक मात्र भगवान शंकर हैं। आप शंकर जी की उपासना कर उन्हें प्रसन्न करके पुत्र प्राप्त कर सकते हैं। इस बात से प्रसन्न होकर मृकण्ड ऋषि गंगा-गोमती के संगम तपोवन ‘कैथी’ जाकर भगवान शंकर की घोर उपासना में लीन हो गये। कुछ वर्षों बाद प्रसन्न होकर शंकर जी ने उन्हें दर्शन दिया और वर माँगने के लिए कहा। मृकण्ड ऋषि ने याचना कि- “भगवान मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो।” इस पर शिव ने कहा- “तुम्हें अधिक आयु वाले अनेक गुणहीन पुत्र चाहिए या फिर मात्र सोलह वर्ष की आयु वाला एक गुणवान पुत्र।” मुनि ने कहा कि- “प्रभु! मुझे गुणवान पुत्र ही चाहिए।” समय आने पर मुनि के यहाँ मार्कण्डेय नामक पुत्र का जन्म हुआ। बालक को मृकण्ड ऋषि ने शिक्षा-दिक्षा के लिए आश्रम भेजा। समय बीतने के साथ बालक की अल्प आयु की चिन्ता मृकण्ड ऋषि को सताने लगी। दोनों दम्पत्ति दुःखी रहने लगे। मार्कण्डेय जी को माता-पिता का दुःख न देखा गया। वे कारण जानने के लिए हठ करने लगे। बाल हठ के आगे विवश होकर मृकण्ड ऋषि ने सारा वृत्तांत कह बताया। मार्कण्डेय समझ गये कि ब्रह्मा की लेखनी को मिटा कर जब भगवान शंकर के आशिर्वाद से मैं पैदा हुआ हूँ तो इस संकट में भी शंकर जी की ही शरण लेनी चाहिए। ऋषि मार्कण्डेय पूरे समर्पण भाव के साथ शिव की पूजा में लीन थे जब यमदूत उन्हें लेने आए तो वह उनकी पूजा में विघ्न डाल पाने में सफल नहीं हुए। यमदूत को असफल होते देख स्वयं यमराज को मार्कण्डेय को लेने धरती पर आना पड़ा। यमराज ने एक फंदा मार्कण्डेय की गर्दन में डालने की कोशिश की लेकिन गलती से वह फंदा शिवलिंग पर चला गया। यमराज की इस हरकत पर शिव को क्रोध आ गया और वह अपने रौद्र रूप में यमराज के समक्ष उपस्थित हो गए। शिव और यमराज के बीच एक बड़ा युद्ध हुआ, जिसमें यमराज को हार का सामना करना पड़ा। शिव ने बस एक शर्त पर यमराज को छोड़ा कि उनका ये भक्त (ऋषि मार्कण्डेय) अमर रहेगा। इस घटना के बाद शिव को कालांतक भी कहा जाने लगा, जिसका अर्थ है काल यानि मौत का अंत करने वाला। तब से गंगा-गोमती के तट पर बसा ‘कैथी’ गाँव मारकण्डेय जी के नाम से विख्यात है। सती पुराण में उल्लिखित हैं कि स्वयं पार्वती ने भी मार्कण्डेय ऋषि को यह वरदान दिया था कि केवल वही उनके वीर चरित्र को लिख पाएंगे। इस लेख को दुर्गा सप्तशती के नाम से जाना जाता है, जो कि मार्कण्डेय पुराण का एक अहम भाग है।

गंगा-गोमती के पावन तट व गर्गाचार्य ऋषि के तपोस्थली पर अवस्थित मारकण्डेय धाम आस्था का प्रतीक है। यहां प्रति वर्ष महाशिवरात्रि के अलावा सावन माह में काफी संख्या में कांवरिया बाबा का जलाभिषेक करते हैं। साथ ही भक्तगण यहां महीने में दो त्रयोदशी को भी भगवान भोलेनाथ का दर्शन पूजन कर धन्य होते हैं।

प्रति वर्ष कार्तिक मास में भी मेला लगा रहता है। शिवरात्रि के अवसर पर यहां दो दिवसीय मेला लगता है प्रथम दिन शिव बारात के रूप में लाखों पुरुष दर्शन-पूजन हेतु पहुंचते हैं, वहीं इसके अगले दिन मंगलगीत और गाली गायन करती लाखों की संख्या में महिलाएं पूजन करती हैं। यह यहाँ की विशिष्टता है। जबकि किसी अन्य शिवालय पर दो दिवसीय शिवरात्रि उत्सव का आयोजन नहीं होता। यहां नियमित रूप से रुद्राभिषेक, शृंगार और पूजन अर्चन के अतिरिक्त संतान प्राप्ति के लिए हरिवंश पुराण का श्रवण और स्वास्थ्य लाभ और दीर्घ जीवन के लिए महा मृत्युंजय अनुष्ठान कराने का विशेष महत्व है। दूर-दूर से भक्त गण यहां अपनी मनोकामनापूर्ति के लिए पहुंचते हैं। वाराणसी जिले में सबसे अधिक संख्या में भक्तों का जमावड़ा इस धाम पर होता है।

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