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User:Mane358/sandbox

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_*माने परिवार और भण्डारबोड़ी का इतिहास (1780-2024)*_

प्रारंभिक काल (1780-1860) 1780: माने परिवार का इतिहास 1780 के पुर्व शुरू होता है, पुर्व भण्डारबोड़ी में जब तान्या और उसके पुर्वज निवास करते थे इनका पुरा परिवार सभ्य,शुशिल और मिलनसार था जिसकी झलक पुरे भण्डारबोड़ी के लोगों के जुबान पर नजर आता है। तान्या का पूरे भंडारबोड़ी गांव पर एकछत्र राज चलता था। यह बताने योग्य है कि सन् 1700 से 1800 के मध्य तक यहां केवल महार जाति का ही निवास हुआ करता था। तान्या के तीन बेटे थे - तिरस्या, भूरष्या और रुस्तम। इसी काल में अंग्रेजी शासन का भण्डारबोड़ी में आगमन हुआ। ज्ञात हो कि तान्या तीनों बेटों में से भूरष्या बहुत ही ताकतवर था और वह अंग्रेजों से भी नहीं डरता था। भूरष्या ने कभी शादी नहीं की।

तकरीबन 1860 के बाद से ही भण्डारबोड़ी में अन्य जातियों के लोग जो ग्राम के समीपवर्ती सीमा में रहते थे बसने लगे। कुछ लोग बांधरी, हमेशा से सटे सीमावर्ती इलाकों से आने लगे। भूरष्या की मृत्यु के बाद, गांव में अन्य जातियों के लोग बसने लगे थे। इस समयावधि के दौरान माने परिवार की सत्ता धीरे-धीरे कम होती गई जिसका मुख्य कारण माने दंपति का बुद्ध की ओर आकर्षण हो सकता है। लगभग 1937 के समय तक बुद्ध पहाड़ी में गांव से बुद्ध वंदना,भजन गाते हुए बाजे-गाजे के साथ माने दम्पति जाया करती थी। जिसमें रुस्तम,यादोरावऔर हरि पाटेल के वंशज हुआ करते थे। माने परिवार का इस तरह बाजे-गाजे के साथ जाना दुसरी जाति वालों को रास नहीं आया उन्होंने उनसे वाद्य यंत्र छिनकर मार-पिटाई भी की,1951 में बुद्ध पहाड़ी पर पहली बार कुंआ बनाया गया और बुद्ध मेला का आयोजन भी किया गया जिसमें दुर दुर से भिक्षुसंघ और कई लोग आये हुए थे।

सन् 1900: इस समय तक रुस्तम के तीन बेटे हुए - सोमा, गोमा, और रामप्रसाद। यह समय ऐसा था जब अन्य लोगों ने माने दम्पति की खेती पर कब्जा कर लिया था।

गोमा के वंशज: गोमा के पांच बेटे हुए। इन पांचों ने मिलकर भंडारबोड़ी में फिर से अपनी शाख बनाये रखने की पूरी कोशिश की।

माने दम्पति की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराएं आज भी जीवित हैं। गांव के विभिन्न उत्सव और त्योहारों में माने परिवार की योग्यता का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।

निष्कर्ष माने परिवार एक कठिन संघर्ष और पुनरुत्थान का इतिहास है। तान्या से लेकर गोमा के वंशज तक, इस परिवार ने विभिन्न चुनौतियों का सामना किया है और आज भी अपनी पहचान और सम्मान को बनाए रखने के लिए संघर्षरत है। भंडारबोड़ी गांव में माने परिवार की ऐतिहासिक धरोहर को सम्मानित किया जाता है और उनके इतिहास से आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिलती रहेगी।