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User:2240642archaraji

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बिहार की सुजनी कढ़ाई कला

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बिहार की सुजनी कढ़ाई का काम, एक कपड़े पर किये जाने वाली कला है, जिसे जी आई पंजीकरण अधिनियम के तहत संरक्षण दिया गया है। यह आम तौर पर एक रजाई या बिस्तर पर की जाती है, जो पहले पुराने कपड़ों से बनाया होता था, लेकिन अब ये आसानी से मिलने वाले कपड़े से बनाया जाता है, जिसमें कहानियों को बयान करने वाले रूपांकनों के साथ बहुत सरल टांके से कढ़ाई की जाती है। यह विशेष रूप से मुजफ्फरपुर के गायघाट ब्लॉक के भुसरा के 15 गांवों और भारत में बिहार के मधुबनी के कुछ गांवों की महिलाओं द्वारा बनाया जाता है। बिहार की सुजनी कढ़ाई कला, एक प्रसिद्ध कढ़ाई की कला है, जिसे भारत सर्कार के माल के भौगोलिक संकेत (पंजीकार एवं सुरक्षण) अधिनियम 1999 के तहत संरक्षित किया गया है। इसे पेटेंट डिजाइन और ट्रेडमार्क नियंत्रक द्वारा "बिहार के सुजनी कढ़ाई कार्य" शीर्षक के तहत पंजीकृत किया गया था और जी आई आवेदन संख्या 74, कक्षा 26 के तहत एक कपड़े का माल के रूप में दर्ज किया गया था। जी आई टैग को 21 सितंबर 2006 को मंजूरी दी गई थी।

जगह

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यह कढ़ाई का कला पहली बार भुसरा गांव में हुआ था, जो मिथिला पेंटिंग की कला जहाँ शुरू हुई थी वहां से 100 किलोमीटर की दूरी में हैं। यह पुराने दिनों और अभ भी उत्तर बिहार की मुज़फरपुर जिले की ग्रामीण महिलाओं के द्वारा किया जाता हैं।

इतिहास

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इसका प्रारंभिक इतिहास अठारहवीं सदी तक जाना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य प्रत्यक्ष रूप से नवजात शिशुओं को उनके जन्म के तुरंत बाद एक मुलायम आवरण देना था। इसे पुराने साड़ियों और धोतियों से लिया गया अलग-अलग रंगों के कपड़ों के टुकड़े को साथ में जोड़ कर बनाया जाता था। इस प्रक्रिया में पुराने साड़ी या धोतियों के तीन या चार टुकड़े इकट्ठे किए जाते थे, और फिर उन्हें एक के ऊपर दूसरे रख कर सिला जाता था। इस प्रक्रिया में शिशु के माँ की इच्छा को व्यक्त करने वाले रूपांकन सिले जाते थे, जिन्हें आम तौर पर गहरे रंग के ' चैन स्टिच ' से बनाया जाता था। सुजनी तकनीक दो प्राचीन मान्यताएं पर आधारित है। पहला, एक धार्मिक परंपरागत विचारधारा में, यह "चितिरिया माँ, तख्तियों की देवी " देवता की उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करता था; जो असंगत तत्वों को समग्र रूप से एक एकीकृत संपूर्ण में करने की अवधारणा का प्रतीक था। दूसरा उद्देश्य एक नवजात शिशु को अपने माँ के कोमल आलिंगन में हुआ जैसा बताने वाला मुलायम सा कपड़ा बनाना था। सुजनी शब्द दो शब्दों से बनाया गया है; ' सु ' जिसका अर्थ है "आसानी और सुविधा प्रदान करने वाला" और ' जनि ' जिसका अर्थ है " जन्म "। इस पर सूरज और बादल के चित्रों का सिलाई किया जाता था, जो जीवन प्रदान करने वाले शक्तियों का प्रतीक हैं, जनन प्रतीक, पवित्र पौराणिक पशु जो अशुभ शक्तियों से बचती है और देवताओं की कृपा दिलाती है। विभिन्न रंगों के धागों का प्रयोग किया जाता था, जैसे कि लाल खून का प्रतीक और पीला सूरज का प्रतीक । यह कला लगभग समाप्त हो गया था, जब इसे 1988 में मुजफ्फरपुर के पास स्थित भुसरा गांव के महिला विकास सहयोग समिति (एम वी एस एस), एक स्वायत्त समाज, के प्रेरणा से पुनर्जीवित किया गया था। अब भुसरा के चारों ओर के 22 गांवों की लगभग 600 महिलाएं इस कला को सक्रिय रूप से कार्यान्वित करती हैं।

उत्पाद विवरण

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सुजनी बुनाई में बुने जाने वाले चित्रे उन महिलाओं की वेदना और अभिलाषाओं का प्रतिबिम्ब करती हैं जो एक पुरुष समाज में रहती हैं। इसे एक ख़ास प्रकार के प्रतीकों से दोनों पक्षों पर बुना जाता है। कपड़े के एक पक्ष पर महिलाओं के दुख को व्यक्त करते हैं, जैसे कि शराब पीकर अपनी पत्नी के प्रति हिंसात्मक व्यवहार करने वाला पति, शादी के दौरान दहेज लेने वाले दूल्हे की तलाश, गांव में सभा स्थल पर इकट्ठे हुए गांव के पुरुष, और घूँघट में ढकी हुई महिलाएं। कपड़े के दूसरे पक्ष पर एक महिला की महत्वाकांक्षाओं की मंजिल को दर्शाया जाता है, जैसे कि उसके उत्पाद और सामान को एक बाजार में बेचकर पैसे कमाकर जीवन जीने की इच्छा, लोगों की सभा में व्याख्यान करने वाली महिला, एक महिला जो न्याय कर रही है और जिसे सब से सम्मान मिल रहा हो। सुजनी बुनाई के कपड़े के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कपड़ा जैसे "सतीला " अब महंगा हो गया है। उसके अलावा सस्ते प्रकार के सफेद या रंगीन निशान, तुषार सिल्क, केसमेंट कपड़ा, और बुनाई धागे जैसे कि ‘मून’ धागा या रंगोली या ‘एंकर’ धागे का उपयोग होता है। बुनाई के कपड़े के समान रंग के धागे के साथ सिलाई की जाती है। पैटर्न की मुख्य रूपरेखा के लिए, काले, भूरे और लाल धागे का उपयोग करके ‘चैन‘ सिलाई का उपयोग किया जाता है। अब बनाए गए उत्पाद रजाई या चादर के रूप में हैं। उनमें ग्रामीण दृश्य, हिन्दू वीरों की कथाएँ, वर्तमान सामाजिक विषय जैसे कि बेटी की हत्या, चुनाव के दौरान हिंसा, महिलाओं की शिक्षा, और घरेलू हिंसा जैसे विषयो का डिज़ाइन हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य और पर्यावरण के बारे और महिलाओं के अधिकारों की अभिव्यक्ति के बारे में भी डिज़ाइन होते हैं ।