Draft:आरासुरी अंबाजी मंदिर - आरासणा (सिरोही) राजस्थान
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आरासुरी अंबाजी तीर्थ धाम -आरासणा (जिल्ला-सिरोही) राजस्थान भारत वर्ष के सभी शक्तिपीठों में इस शक्तिपीठ को प्रथम शक्तिपीठ माना गया है ! राजस्थान के सिरोही से 20 किलोमीटर दूर और पिंडवाड़ा से 12 किलोमीटर की दुरी पर गाँव आरासणा में स्थित माँ आरासुरी अम्बे का मंदिर जो की जन जन की आस्था का केंद्र व् दिव्य इतिहास से परिपूर्ण है! यहाँ माँ अम्बे के नाभि की पूजा की जाती है !
माँ आरासुरी अंबाजी मंदिर का दिव्य इतिहास आईए जानते है मंदिर का इतिहास “तीर्थ आरासणा मांडणी – जहाँ सोना रूपाणि खानानी” अर्थात आरासणा एवं मांडवडा में सोने चांदी की खाने थी, भारत वर्ष के सभी शक्तिपीठों में इस शक्तिपीठ को प्रथम शक्तिपीठ माना गया है ! जो विश्वविख्यात दाता अंबाजी आदि स्थल है यही से माँ अम्बिका दाता अंबाजी पधारी थी ! यहाँ पर पूजा एक नाभि कमल चक्र की होती है , जो प्रथम शक्तिपीठ का प्रतिक है ! प्राचीन मंदिर पहाड़ी के उतंग शिखर पर है , जहां पर त्रिशूल की पूजा होती है ! माँ आरासुरी का प्राचीन एवं मूल मंदिर आज भी पहाड़ी पर स्थित है ! प्राचीनकाल में आरासुर नामक नरभक्षी राक्षश यहा रहता था उस से क्षेत्र की जनता त्रस्त थी , जनता की आराधना पर माँ अम्बे ने आरासुर राक्षश का वध करने पर माँ अम्बे का यह रूप आरासुरी कहलाया !
कहा जाता है की द्वापर युग में जब भगवान शिव माँ पार्वती को सती होने पर ले जा रहे थे तब माँ पार्वती के अंग धरती पर गिर रहे थे तब माँ पार्वती के नाभि वाला अंग गाँव आरासणा की पहाड़ियों पर गिरा था! जिससे शक्ति पीठ के नाम से भी जाना जाता है मंदिर के पुजारी के अनुसार माँ अम्बे की नाभि गिरने के बाद आरासणा के आस पास के लोग माँ अम्बे के पूजा अर्चना के लिए पहाड़ पर आते थे जिसमे माली समाज की बूढी औरत जो माँ अम्बे की परम भक्त थी जो प्रति दिन पहाड़ पर चढ़ कर माँ अम्बे की पूजा अर्चना करती थी एक दिन भी ऐसा नही था की बूढी औरत माँ माँ अम्बे की पूजा के लिए नही आई हो ! जब वो बूढी औरत पहाड़ पर चढ़ने में असर्मथ हो गई और अधिक बूढी हो गई तब उसने माँ अम्बे से प्राथना की की ”हे माँ मेरा शरीर अब साथ नही देता अब आप ही कुछ करे में अब पहाड़ चढ़ने में असर्मथ हु” और उसी रात उसे माँ अम्बे सपने में आई और कहा ”तेरी भक्ति से में प्रसन्न हु इसीलिए तेरी खातिर में निचे आ रही हु , मेरा निवासः शेष नाग के निचे होगा” माँ शक्ति से चट्टान में एक श्याम रंग का यंत्र प्रगट किया जिसको नाभिकमल के नाम से जाना जाता है जब वह बूढी औरत जगी और वह मंदिर के वहा गई तब उसने देखा की पहाड़ पर माँ अम्बे कुम कुम के पद चिन्ह मौजूद थे जो की पहाड़ से निचे की तरफ जा रहे थे ! जिसको लेकर कुम कुम ना पगला पड्या गीत प्रचलित हुआ है, और माँ अम्बे शेष नाग से आकर के पहाड़ी के निचे विराजमान है! इसी बूढी औरत के वंशज आज भी इसी मंदिर में पूजा करतें है!
प्राचीन धार्मिक किवदंती है की दाता गुजरात के नरेश माँ अम्बे के परम भक्त थे वे माँ अम्बे के दर्शन के लिए यहाँ आते थे ! उनकी अनन्य भक्ति पर प्रसन्न होकर उनकी अंतिम इच्छानुसार माँ से प्रार्थना करने पर माँ आरासुरी अंबाजी ने दाता राज्य जाना इस शर्त पर स्वीकार किया राजा आगे चले एवं वह स्वयं पीछे पीछे आएगी परन्तु राजा द्वारा पीछे मुड़कर देखने पर वचन भंग माना जायेगा और में वही विराजमान हो जायुंगी ! ऐसा ही हुआ ज्यो ही दाता के राजा अपने राज्य की सरहद (वर्तमान दाता अंबाजी मंदिर गुजरात) में प्रवेश किया माँ के पायल की आवाज आनी बंद हुई तब राजा ने शंकावश पीछे मुड़कर देखा की माँ आरासुरी आ रही है या नही ! राजा के पीछे मुड़कर देखते माँ आरासुरी अंबाजी वही पर विराजमान हो गई ! माँ अम्बिका बोली हे राजन तेरा मेरा वचन यही तक था, और मेरा निवास यहाँ गब्बर की पहाड़ियों में होगा जो अंबाजी मंदिर से ५ किलोमीटर दुरी पर है !